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हिंदी वर्णमाला / संपूर्ण अध्ययन



 हिंदी वर्णमाला  

इस ब्लॉग के माध्यम से, हम हिंदी वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर का विस्तृत अध्ययन करेंगे, जिसमें उनके उच्चारण, उपयोग, और उनसे बनने वाले शब्दों के उदाहरण शामिल होंगे। आइए, इस यात्रा की शुरुआत करते हैं और हिंदी भाषा की नींव को और मजबूती से समझते हैं  हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य के ज्ञान के लिए हिंदी वर्णमाला की जानकारी होना बहुत ही आवश्यक  है। हिंदी वर्णमाला क्या है ? हिंदी varnamala में कितने अक्षर होते हैं ? हिंदी varnmala में स्वर व्यंजन क्या है ? हिंदी varnamala की कितनी संख्या होती है ? इन सभी प्रश्नों के बारे में इस BLOG में पढेंगे ‌। 


THIS ARTICLE INCLUDES ;- 

1. हिंदी वर्णमाला किसे कहते है ?
2. हिंदी वर्णमाला के प्रकार 

    • स्वर
    • व्यंजन
    •  हृस्व स्वर 
    •  दीर्घ स्वर 
    • प्लुत स्वर
    • अल्पप्राण
    • महाप्राण
    • सघोष
    • अघोष
    • हिंदी वर्णमाला उच्चारण
    • स्वरों का वर्गीकरण
    • व्यंजन का वर्गीकरण 

    3. FAQ

    हिंदी वर्ण की परिभाषा :-  हिंदी भाषा में  प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है । 
    जैसे:- अ , आ , इ , ए ,क , ख् , ग् , घ्  आदि होते है। 



    हिंदी वर्णमाला

    हिंदी वर्णमाला क्या है ?

    • वर्णो के सुव्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।

    अक्षर -  स्वर और व्यंजन के संयुक्त रूप को अक्षर कहते हैं ।

    जैसे - क , में व्यंजन और स्वर दोनों ध्वनियाँ है क उच्चारण करने पर जो ध्वनि निकलती है क + अ होती है । क , व्यंजन है और अ , स्वर है । 

    हिंदी वर्णमाला को दो भागो में बांटा गया है ।

    हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन

    1. स्वर
    2. व्यंजन
    हम अपने बोलचाल की भाषा में मात्र 44 वर्णों का प्रयोग करते है  हिंदी में वर्णों की संख्या 52 है ।

    हिंदी वर्णमाला चार्ट -

    वर्णमाला  

    स्वर :- जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस(वायु), कण्ठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है,'स्वर' कहलाते है।

     अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ , अं , अ:

    व्यंजन :-

    क वर्ग = क , ख , ग , घ , ङ = 05

    च वर्ग = च , छ  , ज , झ , ञ = 05

    ट वर्ग  = ट , ठ , ड , ढ , ण = 05

    त वर्ग = त , थ , द , ध , न = 05

    प वर्ग = प , फ , ब , भ , म = 05

    स्पर्श व्यंजनों की कुल संख्या = 25

    अन्त:स्थ = य , र  , ल , व = 04

    ऊष्म  व्यंजन  =  श , ष , स , ह = 04

    मूल व्यंजनों की कुल संख्या = 25 + अन्त:स्थ (04) + ऊष्म (04) = 33 है । 

    संयुक्त व्यंजन  = क्ष , त्र , ज्ञ , श्र = 04

    उत्क्षिप्त / द्विगुणित व्यंजन = ड़ , ढ़  (02) 

    व्यंजनों की कुल संख्या = 25 + अन्त:स्थ (04) + ऊष्म (04) + संयुक्त व्यंजन (04)उत्क्षिप्त / द्विगुणित (02) = 39 है 

    मूल स्वरों की संख्या 11 + आयोगवाह वर्णों की संख्या 02 + व्यंजनों की संख्या 39 = हिंदी में 52 वर्ण है।

    महत्वपूर्ण तथ्य : -

    कुल व्यंजनों की संख्या 39 होती है ।

    मूल व्यंजनों की संख्या 33 होती है ।

    स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25 होती है ।

    अंत:स्थ व्यंजनों की संख्या 04 होती है ।

    ऊष्म व्यंजनों की संख्या 04 होती है ।

    संयुक्त व्यंजनों की संख्या 04 होती है ।

    नोट :- क से क वर्ग , च से च वर्ग , ट से ट वर्ग , त से त‌ वर्ग प से प वर्ग  अर्थात वर्ग के प्रथम वर्ण के नाम पर वर्ग का नाम लिखा गया है ।

    ✓ पहले हम जानेंगे स्वर के बारे में-

    स्वरों की मात्राएं - 

    अ (X) कोई मात्रा नहीं होती है।
    आ    ा ,    काम
    इ    ि ,     हिमाचल, हिमालय 
    ई  ी ,      नीर , रीना 
    उ  ु ,       कुसुम, कुमार 
    ऊ    ू  ,   भूख , भूल 
    ऋ    ृ ,    कृपा, तृण , तृष्णा
    ए    े ,      केश , रेत 
    ऐ    ै ,      सैनिक, कैनन 
    ओ    ो ,  ओखली , चोर 
    औ    ौ  ,  औरत , चौखट 

     हिंदी वर्णमाला स्वर - 

    स्वर - 

    इनकी संख्या 11 है । जिन वर्णो का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते है वे स्वर कहलाते है 

    उच्चारण की दृष्टि से स्वर तीन प्रकार के होते हैं।

    1. हृस्व स्वर 
    2. दीर्घ स्वर 
    3.प्लुत स्वर

    हिंदी में मात्राएं 10 होती हैं ।  अ की कोई मात्रा नहीं होती है स्वरों की संख्या 11 होती है जो कि निम्नलिखित हैं :-

    अ, आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ, ए , ऐ , ओ , औ , 

    शुद्ध स्वरों की संख्या 10 होती है क्योंकि ऋ की गिनती शुद्ध स्वर में नहीं होती है । ऋ का उच्चारण र् + इ =रि होने लगा है

    अ, आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ , 

    कुल स्वरों की संख्या 11 होती है जिसमें ऋ को शामिल किया गया है । जो कि निम्नलिखित है ।

    अ, आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ, ए , ऐ , ओ , औ , 



    आगे पढ़ने से पहले आपको अल्पप्राण, महाप्राण,सघोष और अघोष की जानकारी आवश्यक है। 

    अल्पप्राण :  

    अल्प + प्राण से मिलकर बना है अल्प का अर्थ होता है ‘कम’ प्राण का अर्थ होता है ‘वायु’ ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय मुखसे कम वायु निकलती है उसे अल्पप्राण कहते हैं । 

    महाप्राण : 

    महा + प्राण से मिलकर बना है महा का अर्थ होता है ‘अधिक’ (ज्यादा) प्राण का अर्थ होता है ‘वायु’ ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय मुख से ज्यादा वायु निकलती है महाप्राण कहलाते है 

    सघोष : 

    जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर तंत्रियों में कंपन होता है उन्हें सघोष वर्ण कहते हैं ।  

    अघोष :

     जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर तंत्रियों में कंपन नहीं होता है उन्हें अघोष वर्ण कहते हैं । 




    आयोगवाह :-

    अं , अ : आयोगवाह कहा जाता है । स्वर के साथ लिखे जाते हैं , लेकिन इनकी गिनती स्वर में नहीं होती है।

    अनुस्वार :-

    अं को अनुस्वार (्ं) कहा जाता है इसका उच्चारण नाक से होता है यह अल्पप्राण तथा सघोष होता है ‘अ’ को सिर्फ आधार बनाकर लिखा जाता है। जैसे - बंदर , कंधा , संग , लंगर 

    अनुस्वार व पंचमाक्षर के प्रयोग के नियम - 

    यदि कोई पंचम वर्गीय वर्ण स्वर रहित हो (बिना स्वर के) तथा उसके बाद इस वर्ग का कोई अन्य वर्ण आए तो वह पंचम अक्षर अनुस्वार में बदल जाता है ।

    जैसे - हिन्दी, (अशुद्ध है ), हिंदी, शुद्ध है । 

             कम्पन, (अशुद्ध है ), कंपन, शुद्ध है ।  

             नन्दन,  (अशुद्ध है ), नंदन, शुद्ध है ।

              कुण्ड, (अशुद्ध है ) , कुंड, शुद्ध है ।

    ✓ पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग (ं) बिंदी के रूप में किया जाता है ।

    ✓ शब्द में अनुस्वार के बाद जो व्यंजन लगा हो उसी वर्ग के पंचम वर्ण को अनुस्वार के रूप में बोला या लिखा जाता है।

    क वर्ग - गंगा ( ङ्) = गङगा  (ं) 

    च वर्ग - चंचल ( ञ्) = चञ्चल  (ं)

    त वर्ग - पंथ (न्) = पन्थ (ं) 

    ट वर्ग - पंडित (ण्) = पण्डित (ं) 

    प वर्ग - चंपक = (म्) चम्पक (ं) 

    ङ् , ञ् , ण् , न् , म् , इनका उच्चारण नाक से होता है।

    अनुनासिक :- 

    जब किसी वर्ण का उच्चारण करते समय हवा नाक और मुख दोनों से निकलती है तब उस वर्ण के ऊपर चंद्रबिंदु ( ँ )लगाया जाता है इसे ही अनुनासिक कहते हैं ।

    जैसे - पँखुड़ी , ताँगा , लहँगा , धँसना ,  हँसी , आँत , गाँव आँगन , साँचा , आँख , अँगूठा , दाँत , आँगना ।

    जब शिरो रेखा के ऊपर कोई मात्रा ना हो तब चंद्रबिंदु (ँ) का प्रयोग किया जाता है अन्यथा बिंदु (ं ) का प्रयोग होता है। 

    जैसे - यहाँ - यहीं , कहाँ  - कहीं 

    निरनुनासिक :-   

    जिनके उच्चारण में नासिका मार्ग बंद रहता है निरनुनासिक या मौखिक ध्वनियां कही जाती हैं ।
    जैसे - अपना , आप , इधर , उधर , घर आदि। और वायु केवल मुख से ही बाहर निकलती है 

    विसर्ग :- 

    अ : को विसर्ग (:) कहा जाता है इसका उच्चारण कंठ से होता है और अह् की ध्वनि निकलती है। यह महाप्राण और सघोष होता है ‘अ’ को सिर्फ आधार बनाकर लिखा जाता है। जैसे - प्रातः , अतः , स्वत: आदि ।

     सभी स्वर अल्पप्राण और सघोष होते हैं ।

    • किशोरी दास वाजपेयी जी कहते हैं :- जो योग न होने पर साथ रहे वही आयोगवाह होता है ।

    मूल स्वर/ लघु स्वर/ह्रस्व स्वर 

    जिन स्वरों के उच्चारण में कम से कम समय लगता है उन्हें मूल / लघु / हृस्व कहते है। जो निम्नलिखित है।

    नोट:- लघु का अर्थ होता है छोटा और मूल का अर्थ होता है बिना किसी और ध्वनि की सहायता से बना हुआ अर्थात स्वतंत्र, मूल / ह्रस्व स्वर / लघु स्वर कहते है यह एकमात्रिक होते है।

    अ , इ  , उ , ऋ ,  ये मूल स्वर है इनकी संख्या चार (4) है  

    दीर्घ स्वर / गुरु संधि स्वर 

    जिन स्वरों के उच्चारण में हृस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें उन्हें दीर्घ / गुरू स्वर कहते है। 
    है। यह द्विमात्रिक होता है। इनकी संख्या सात है। जोकि निम्नलिखित है :-

    नोट:- दीर्घ या गुरु का अर्थ होता है बड़ा । यह द्विमात्रिक होता है। द्विमात्रिक का अर्थ है दो मात्राओं से  
    मिलकर बनता है जैसे -
    अ + अ = आ , अ + इ =  ए , आ  को बनाने के लिए दो ‘अ’ की जरूरत पड़ी ‘ए’ को  बनाने के लिए और की आवश्यकता पड़ी ।

    आ , ई , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ , इनकी संख्या सात (7) है।

    प्लुत स्वर:- संस्कृत भाषा में होते हैं , हिंदी में नहीं ।

    जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते है।
    जैसे :- ओऽम 

    दीर्घ / गुरु / संधि स्वर को दो भागों में बांटा गया है ।

    1. मूल दीर्घ स्वर / सजातीय संधि स्वर (03)

    अ + अ = आ  , समान वर्णों से मिलकर बने है । इसीलिए इनको सजातीय कहा गया है ।
     इ + इ = ई , समान वर्णों से मिलकर बने है । इसीलिए इनको सजातीय कहा गया है ।
    उ + उ = ऊ , समान वर्णों से मिलकर बने है । इसीलिए इनको सजातीय कहा गया है ।  

    2. संयुक्त दीर्घ स्वर / विजातीय संधि स्वर (04)

              अ + इ = ए              अ + उ = 
             अ + ए = ऐ              अ + ओ = 

    उपरोक्त स्वर असमान वर्णों के मेल से बने हैं अर्थात समान जाति वाले वर्णों से मिलकर नहीं बने हैं ।इसलिए विजातीय हैं दो वर्णों के मेल से बने हैं इसलिए इनकोसंयुक्त दीर्घ स्वर कहा जाता है ।

    संधि स्वर / कृत्रिम स्वर / बनावटी स्वर

    परिभाषा :- वे स्वर जो दो स्वरों की संधि (मेल) से बने हैं ।

    जैसे :- अ + अ = , इ + इ = , उ + उ =  
             अ + इ  =
    , अ + ए = , अ + उ = ओ  
             अ + ओ =

    मूल स्वर / जड़स्वर / नैसर्गिक स्वर / बीजाक्षर स्वर

    परिभाषा : - वे स्वर जो अपने आप में स्वतंत्र हैं जिनका निर्माण किसी अन्य स्वर के योग (मेल) से नहीं हुआ है ।

    जो कि निम्नलिखित हैं :- अ , इ , उ , ऋ (04)

    जीभ के भाग के आधार पर उच्चारण :-

    1.अग्रभाग
    2.मध्यभाग
    2.पश्चभाग

    अग्रभाग :- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अगला भाग ऊपर - नीचे उठता है अग्र स्वर कहलाते हैं । जैसे :- इ , ई , ए , ऐ , (ऋ)

    मध्यभाग :हिंदी में (अ) स्वर केंद्रीय स्वर है इसके उच्चारण में जीभ का अगला भाग थोड़ा सा ऊपर उठता है  जैसे :- अ (केवल ‘अ’ है जिसका उच्चारण जीभ के मध्य भाग से होता है ।

    पश्चभाग :- जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पिछला भाग सामान्य स्थिति से ऊपर उठता है पश्च स्वर कहे जाते हैं। जैसे :- आ , उ , ऊ , ओ , औ (05) + ऑ (+01 = 06)

    आगत ध्वनि क्या है ?  ऑ , अंग्रेजी भाषा से लिया गया है देवनागरी लिपि में इसका प्रयोग बहुतायत किया जाता है इसे आगत स्वर कहते हैं  जीभ के पिछले हिस्से से बोला जाता है ।

    उदाहरण :-  OFFICE को हिंदी में लिखना होगा तो ऑफिस लिखेंगे । 
    ध्यान दें :- देवनागरी लिपि व संस्कृत भाषा में स्वरों की संख्या 13होती  है । (ॡ और ॠ को जोड़कर)
     

    मुख के खुलने के आधार पर :- 

    1.संवृत स्वर
    2.अर्द्ध संवृत स्वर
    3.विवृत स्वर
    4.अर्द्ध विवृत स्वर

    संवृत स्वर :-जिन स्वरों के उच्चारण में मुख सबसे कम खुलता है अर्थात लगभग बंद रहता है उसेसंवृत स्वर कहते हैं । 

    जैसे :- इ  , ई , उ , ऊ , ऋ 

    अर्द्ध संवृत स्वर :- संवृत स्वर से अधिक खुलता है अर्थात मुख आधे से कम खुलता है 

    जैसे :- ए , ओ 

    विवृत स्वर :- जिस स्वर के उच्चारण में मुख सबसे अधिक  खुलता है अर्थात पूरा खुलता है ।

    जैसे :- आ

    ( आप ‘आ’ बोलेंगे तो आपका मुख पूरा फैल जाएगा अर्थात खुल जाएगा )

    अर्द्ध विवृत स्वर :- विवृत की तुलना में थोड़ा कम खुलता है अर्थात मुख आधे से ज्यादा खुलता है । जैसे :- अ , ऐ , औ , (ऑ) का उच्चारण करने में मुख आधे से ज्यादा खुलता है |

    मुख के आकृति के आधार पर उच्चारण :- 

    वर्तुल स्वर / गोलाकार / वृत्त मुखी / वृताकार स्वर :-

    ऐसे स्वर जिनका उच्चारण करते समय ओष्ठ गोल हो जाते है अर्थात वृत्त जैसी आकृति बना लेते हैं ।
    जैसे :- उ , ऊ , ओ , औ (04) ,
    होते हैं ।

    अवृतमुखी / अवृत्ताकार स्वर :- 

    ऐसे स्वर जिनका उच्चारण करते समय ओष्ठ गोल नहीं होते हैं अपितु फैल जाते हैं ।
    जैसे :- अ , आ , इ , ई , ए , ऐ (06)
    है।

    अब हम जानेगें स्वरों के उच्चारण स्थान के बारे में :-

     हिंदी वर्णमाला उच्चारण स्थान -

    मुख के जिस भाग से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे उसे वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं।

    अ , आ = कंठ 
    इ , ई   = तालु 
    उ , ऊ = ओष्ठ 
    ए , ऐ  = कंठ तालु 
    ओ , औ = कंठोष्ठ्य 
    ऋ = मुर्धा 

    अ + इ (कंठ + तालु ) = ए , कंठ + तालु से मिलकर बना है इसीलिए इसका उच्चारण कंठ तालु से होता है।

    अ + उ (कंठ + ओष्ठ) = ओकंठ +ओष्ठ से मिलकर बना है इसको कंठोष्ठ्य कहा जाता है

    ध्यान दें :- स्वर में कोई दंत ध्वनि नहीं है ।

    हलंत - 

    जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित (बिना स्वर के) किया जाता है तब उस वर्ण के नीचे एक तिरछी रेखा (  ् ) लगा दी जाती है । यह रेखा हलंत कहलाती है ।

    जैसे - सतत्  ,  क् , ख्  ग् , यहां समझ सकते हैं कि त , क , ख , ग वर्णों के नीचे एक तिरछी रेखा लगी हुई है ।

    ✓आयोगवाह ध्वनियों का प्रयोग मुख्यतः तत्सम शब्दों में होता है।

    ✓ विसर्ग (:) हमेशा तत्सम होता है ।

    ✓ ‘ऋ’का प्रयोग केवल तत्सम शब्दों में होता है अतः इसे तत्सम स्वर कहते हैं ।

    ✓ इ , ई , ऋ , स्त्रीलिंग वर्ण है ।

    ✓ अनुस्वार तत्सम व तद्भव दोनों होता है ।

    ✓ स्वर स्वत: उच्चरित होते हैं अर्थात इनके उच्चारण में अन्य किसी ध्वनि की सहायता नहीं लेनी पड़ती है

    हिंदी वर्णमाला व्यंजन - 

    हिंदी व्यंजन की परिभाषा -

    वे ध्वनियांँ जिनका उच्चारण करते समय मुख से बाहर निकलने वाली हवा को मुखांगो (मुख के अंगो ) की बाधा का सामना करना पड़ता है अर्थात मुखांग परस्पर स्पर्श करते हैं , उन्हें व्यंजन कहते हैं । 

    व्यंजन , स्वरों की सहायता से उच्चरित होते हैं अर्थात बिना स्वरों के इनका उच्चारण असंभव है । 
    हिंदी में निम्नलिखित 33 व्यंजन है - 

    Hindi Varnmala में उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनो का वर्गीकरण -

    क वर्ग = क , ख , ग , घ , ङ = 05  (K)

    च वर्ग = च , छ , ज , झ , ञ = 05  (T)

    ट वर्ग = ट , ठ , ड , ढ , ण = 05    (M)

    त वर्ग = त , थ , द , ध , न = 05     (D)

    प वर्ग = प , फ , ब , भ , म = 05   (O)

        अंत:स्थ = य , र , ल , व  = 04

        ऊष्म = श , ष , स  ,  ह  = 04
     
            व्यंजनों की संख्या     = 33 

    उच्चारण स्थान याद करने की Trick -

    K - कंठ, T - तालु , M - मुर्धन्य, D - दंत , O - ओष्ठ

     ( केटीएम दो , KTM DO )

    व्यंजनों का वर्गीकरण -

    उच्चारण के आधार पर - 

    1. कंठ्य व्यंजन - क , ख , ग , घ , ङ , ह 

    2. तालव्य व्यंजन - च , छ , ज , झ , ञ्  , य , श 

     य , श,  को Trick से याद करने के लिए , चाय , जोश , ऐसे साथ में लिखकर याद रख सकते हैं
     जो उच्चारण स्थान ‘च’ का होगा वही ‘य’ का होगा और जो ‘ज’ का होगा वही ‘श’ का होगा।

    3. मूर्धन्य - ट , ठ , ड , ढ , ण , र , ष 

    ष , र , को याद करने की Trick- रट , षठ जो उच्चारण स्थान र,का  होगा वही ट का होगा
    जो ठ का वही ष का होगा।

    4. दंत्य व्यंजन - त , थ , द , ध , न , ल , स 

    ध्यान दें - न , ल , स  यह संस्कृत भाषा में वर्त्स्य व्यंजन थे हिंदी भाषा में आकर दंत्य हो गए । परीक्षा में इन ध्वनियों को पूछे तो विकल्प में अगर वर्त्स्य व दंत्य दोनों आए तब वर्त्स्य को ही चुने क्योंकि यहज्यादा सही है । 

    5. ओष्ठ व्यंजन - प , फ , ब , भ , म 

    6. नासिक्य व्यंजन - ङ् , ञ् , ण् , न् , म् 

    7. दंतोष्ठ व्यंजन - व 

    निम्नलिखित को ध्यान से समझें - 

    क् (1), ख् (2), ग् (3), घ् (4), ङ (5)

    च् (1), छ् (2), ज् (3), झ् (4), ञ् (5)

    ट् (1), ठ् (2), ड् (3), ढ् (4), ण् (5) 

    त् (1), थ् (2), द् (3), ध् (4), न् (5)

    प् (1), फ् (2), ब् (3), भ् (4), म् (5)

    अघोष = 1, और 2, अघोष हैं - क , ख , च , छ , ट , ठ , त , थ , 

    सघोष = 3, 4 , 5, सघोष हैं - ग , घ , ङ , ज , झ , ञ् , ड , ढ , ण् , द , ध , न् , ब , भ् , म , 

    अल्पप्राण = 1 , 3 , 5, अल्पप्राण हैं - क , ग, ङ् , च , ज , ञ , ट , ड , ण्  , त , द , न् , प , ब , म् 

    महाप्राण = 2 , 4 ,  महाप्राण हैं - ख , घ , छ , झ , ठ , ढ , थ , ध , फ , भ,

    द्विस्थानीय वर्ण किसे कहते हैं ?

    कंठ + नासिका = ङ् 

    तालु + नासिका = ञ्   ।

    मूर्धन्य + नासिका = ण्  ।

    दंत्य + नासिका = न्   ।

    ओष्ठ + नासिका = म्   ।

    उपरोक्त प्रत्येक वर्ग का पंचम वर्ण है । दो स्थानीय होते हैं । इनकी संख्या 5 है । 

    अंत:स्थ वर्ण - य , र , ल , व , अल्पप्राण और सघोष होते हैं ।

    ऊष्म व्यंजन - श , ष , स , ह , महाप्राण होते हैं ।

    ऊष्म व्यंजन ‘ह’ सघोष होता है ।

    ऊष्म व्यंजन - श , ष , स , अघोष होते हैं। 






    1. स्पर्श व्यंजन - वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय मुखांग पूर्णतया स्पर्श करते हैं उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं यह 25 हैं । 

    2. स्पर्श संघर्षी - वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय मुखांगों द्वारा स्पर्श भी हो तथा हवा को बाहर निकलने में संघर्ष का सामना करना पड़े उसे स्पर्श संघर्षी व्यंजन कहते हैं जो निम्नलिखित हैं - च , छ , ज , झ ।

    3. अंत:स्थ व्यंजन - वे व्यंजन जिनका उच्चारण करते समय मुखांग आंशिक रूप से स्पर्श करते हैं अंत:स्थ व्यंजन कहते हैं जिनके संख्या चार है - य , र , ल , व ।

    4. अर्द्ध स्वर - जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय मुखांग ना के बराबर स्पर्श करते हैं ,उन्हें अर्द्ध स्वर कहते हैं जो निम्न है - य , व ।

    5. लुंठित - ‘र’ का उच्चारण करते समय जीभ ऊपर की तरफ मुड़ जाती है अतः इसे लुंठित व्यंजन भी कहते हैं ।

    6. प्रकंपित - ‘र’ का उच्चारण करते समय जीभ में कंपन होता है अतः इसे प्रकंपित व्यंजन भी कहते हैं ।

    7. पार्श्विक - जिस ध्वनि का उच्चारण करते समय हवा जीभ के दोनों पार्श्व (बगल) भागों से बाहर निकलती है । उसे पार्श्विक व्यंजन कहते हैं जोकि निम्नलिखित है - ‘ल’ ।

    8. ऊष्म / ईषत् / स्पृष्ट व्यंजन - वे व्यंजन जिनके उच्चारण में हवा घर्षण के कारण ऊष्म होकर बाहर निकलती है तथा ना के बराबर स्पर्श करती है उन्हें ऊष्म तथा  ईषत् / स्पृष्ट व्यंजन कहते हैं । यह निम्नलिखित हैं - श , ष , स , ह ।

    9. प्रयत्न किसे कहते हैं ? 

    ध्वनि के उच्चारण में मुखांगों द्वारा किया गया प्रयास प्रयत्न कहलाता है ।

    10. आगत व्यंजन - 

    क़ , ख़ , ग़ , ज़ , फ़ , यह विदेशी भाषाओं से ली गई ध्वनि है ।

    क़ , ख़ , ग़ , फ़ , ज़  , फारसी भाषा से आगत व्यंजन है इनकी संख्या 5 है ।

    11. (A) उत्क्षिप्त - ‘ड़’ , ‘ढ़’ का उच्चारण करते समय जीभ ऊपर उठकर झटका के साथ नीचे आती है अतः इन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं । उत् का अर्थ है ऊपर उठना और क्षिप्त का अर्थहै शीघ्रता से नीचे आना । 

    (B) ताड़नजात - ताडनजात का अर्थ है आघात करना ‘ड़’ ‘ढ़’ के उच्चारण में छूकर छोड़े गए सितार के तारों के समान गूंज ध्वनि में होती है । इन्हें ताडनजात कहते हैं ।

    (C) द्विगुणित - ‘ड़’ ‘ढ़’ का प्रयोग निम्नलिखित दो रूपों में होता है । 

    1. नुक्ता रहित - (बिना नुक्ता के ) (नुक्ता का अर्थ है जो नीचे बिंदी (ढ़)लगी है ) जिसमें निचे बिंदी नही लगी होती है उनका प्रयोग शब्द के आरंभ  में होता है ।

    जैसे - ढाल , डमरू , ढक्कन , डाली आदि। 

    2. नुक्ता सहित - शब्द के मध्य एवं अंत में इसका प्रयोग होता है जिसमें नीचे नुक्ता लगा होता है ।

    जैसे - सड़क , लड़का , पढ़ा , पढ़ाई , लड़ाई , इनमें सभी में नीचे नुक्ता लगा है ये शब्द के बीच में या फिर शब्द के अंत में आए हैं ।

      (D) विकसित - ‘ड’ ‘ढ’ का विकास कर बने हैं अतः ढ़ , ड़ को विकसित व्यंजन कहते हैं ।

    12. संयुक्त व्यंजन - संयुक्त व्यंजन शब्द का अर्थ है जहां दो या दो से अधिक व्यंजनों का मेल हो रहा हो।

    जैसे - क्ष = (क् + ष), से मिलकर बना है ।

    त्र = (त् + र ), से मिलकर बना है ।

    ज्ञ = (ज् + ञ् ), से मिलकर बना है ।

    श्र = (श् + र),से मिलकर बना है ।

    13. व्यंजन द्विवत्व - जब सामान व्यंजन संयुक्त होते हैं तब वे व्यंजन द्विवत्व व्यंजन कहलाते हैं 

    जैसे - पक्का , बच्चा , अड्डा , सत्तर , अस्सी , नब्बे , इक्का , 

    👆उपरोक्त आप देख सकते हैं कि - क्का , च्चा, ड्डा , त्त, स्सी , ब्बे , सभी समान वर्ण है एक बार आधा और फिर पूरा लिखा गया है जब ऐसे लिखे होते हैं तब इसे द्विवत्व व्यंजन कहते हैं ।

    विशेष तथ्य - 

    हिंदी में दो महाप्राण व्यंजन द्विवत्व नहीं होते है‌ । पहला व्यंजन हमेशा अल्पप्राण ही होगा ।

    जैसे - अच्छा, मट्ठा , पत्थर, आदि।

    उदाहरण - ख और घ महाप्राण है तो ‘ख्घ’ कभी नहीं हो सकता है। अर्थात दो महाप्राण वर्ण द्विवत्व (साथ नही आ सकते है) नहीं होते है।

    ✓ हम लोग मानक हिंदी पढ़ते हैं मानक हिंदी में वर्णों की संख्या 52 है । 

    नुक्ता का प्रयोग सर्वप्रथम राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद ने शुरू किया था । 

    जैसे - राज़ - रहस्य        ज़रा = घोड़ा         ब़ाग = बगीचा 

    ✅ 👆 उपरोक्त में पहले वाले शब्द में नुक्ता लगा है । 

    राज = शासन            जरा = बुढ़ापा      बाग = घोड़े की लगाम

    ✅👆 उपरोक्त में पहले वाले शब्द में नुक्ता नहीं लगा है ।

    भाषा की सार्थक इकाई - वाक्य 

    वाक्य से छोटी इकाई - उपवाक्य 

    उपवाक्य से छोटी इकाई - पदबंध 

    पदबंध से छोटी इकाई - पद (शब्द)

    पद से छोटी इकाई - अक्षर 

    अक्षर से छोटी इकाई - ध्वनि (वर्ण)

    नोट :- जैसे राम शब्द में दो अक्षर (रा, म ) एवं वर्ण ‌ चार है-
    र् आ म् अ 

    FAQ - हिंदी वर्णमाला स्वर व्यंजन के प्रश्न उत्तर - 


    Q. हिंदी में ध्वनियाँ कितने प्रकार की होती हैं ? 


    2 (स्वर , व्यंजन)

    Q. वर्णमाला में स्पर्श व्यंजनों की संख्या कितनी है ? 

    25

    Q. हिंदी वर्णमाला में मूल व्यंजनों की संख्या कितनी है ? 

    33

    Q. भाषा की सार्थक लघुतम इकाई किसे माना जाता है ? 

    शब्द 

    Q. हिंदी भाषा में हृस्व स्वरों की संख्या कितनी है ? 

    4 (चार)

    Q. कौन सा मूल दीर्घ स्वर है ? 

    आ , ई , ऊ 

    Q. किस वर्ण का उच्चारण स्थान कंठ तालु है ?

    ए , ऐ 

    Q. संयुक्त स्वर कौन से हैं ?

    ए , ऐ , ओ , औ , 


    Q. भाषा के सबसे छोटी इकाई है ? 

    वर्ण 


    Q. स्वर और व्यंजन के संयुक्त रूप को क्या कहते हैं ? 

    अक्षर 

    Q. प्लुत स्वर कौन सा है ?

    ओऽम 

    Q. ओ , औ किस प्रकार के वर्ण हैं ?
     
    कंठोष्ठ्य 

    Q. किस व्यंजन का उच्चारण तालु से होता है ?

    च , छ , ज , झ , ञ

    Q. श का उच्चारण स्थान है ?

    तालु से  

    Q. अर्ध स्वर कहलाता है ?

    य , व 

    Q. दंत्य ध्वनि है ?

    त , थ , द , ध , न , ल , स 

    Q. संयुक्त व्यंजन है ? 

    क् + ष = क्ष

    Q. महाप्राण व्यंजन कौन सा है ?


    Q. प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण क्या कहलाता है ?

    महाप्राण व्यंजन 

    Q. अनुनासिक व्यंजन कौन से होते हैं ?

    ङ , ञ , ण , न , म 


    निकर्ष :-

    हिंदी वर्णमाला का महत्व हमारी भाषा और संस्कृत में अत्यधिक है । यह न केवल भाषा की बुनियाद बल्कि इसके माध्यम से हम अपने विचारों को सटीकता और प्रभावी ढंग से व्यक्त कर सकते हैं । हिंदी वर्णमाला की सहायता से हम साहित्य , शिक्षा , संवाद को संरचना और सुंदरता प्रदान करते हैं । इसके बिना भाषा संगठित और अधूरी होती है । हिंदी वर्णमाला का अध्ययन और प्रयोग हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और आगे बढ़ाने के लिए अनिवार्य है । हिंदी वर्णमाला सीखने की हमारे अंदर उत्सुकता होनी चाहिए क्योंकि हिंदी भाषा का आधार वर्णमाला है । हिंदी भाषा का महत्व हमें कभी नहीं भूलना चाहिए इसलिए हिंदी वर्णमाला को हमको घंटा से अध्ययन करना चाहिए ।

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